Saturday 10 October 2015

डिजिटल ठगी

आजकल फेसबुक पर डिजिटल इंडिया के समर्थन में अपनी प्रोफाइल की फ़ोटो बदलने की भेड़चाल सी मची हुई है। फेसबुक के संस्थापक मार्क ज़ुकेरबर्ग यह अच्छी तरह से जानते हैं क़ि कैसे भारतीयो को भावनाओ में बहाकर उनसे कुछ भी करवाया जा सकता है।
इन भोले भले और हद से ज्यादा भावुक फेसबुक उपयोगकर्ताओं को तो शायद पता भी नहीं क़ि डिजिटल इंडिया के समर्थन और तिरंगे की आड़ में फेसबुक अपनी वेबसाइट internet.org का प्रचार कर रहा है। internet.org खुले आम  नेट निष्पक्षता के मानको का उल्लंघन करती है यानि क़ि आपके पास इंटरनेट तो होगा पर आप कुछ  ख़ास वेबसाइट ही देख पाएंगे और ये सभी यूज़र्स अप्रत्यक्ष रूप से इसी नेट निरपेक्षता के खिलाफ वोट कर रहे हैं।
देखा जाते तो डिजिटल इंडिया या किसी भी योजना का समर्थन करने की लिए फेसबुक पर फ़ोटो बदलने का क्या तुक बनता है। फिर यहाँ कोई ऐसा सर्वे भी नहीं हो रहा की इतने लोगो का समर्थन आएगा तो सरकार योजना पर आगे बढ़ेगी अन्यथा नहीं। बेहतर होता क़ि हम इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियो के व्यावसायिक हथकंडो को समझ पाते और प्रतिकात्मक देशभक्ति और दिखावेबाजी से ऊपर उठ कर सोच पाते।

जनसत्ता 10 अक्टूबर 2015 में भी प्रकाशित



Thursday 1 October 2015

हमारे ये दोहरे मापदंड

अगर hypocrisy यानी क़ि डबल स्टैण्डर्ड यानी दोहरे मापदंड पर कोई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता आयोजित की जाए तो भारत निश्चित रूप से जीत का प्रबल दावेदार होगा।भ्रष्टाचार हमारे लिए तब तक ही बुरा है जब तक हम टेबल के इस तरफ हैं। टेबल के उस तरफ जाते ही बढ़ती महंगाई और परिवार के खर्चे याद आ जाते हैं। लाखों करोडो के घोटालो के लिए भ्रष्ट नेताओ को कोसने वाली जनता अपना काम निकलवाने के लिए 100-50 रुपये ऊपर से देने को गलत नहीं मानती।

ठीक वैसे ही पहले हम अपनी नदियों को माँ बनाते हैं फिर उनकी आरती करते हैं और फिर उनको ही प्रदूषित करते हैं। हिंदी फिल्मो के हीरो हेरोइन के लिए तालियां बजने वाले अधिकांश पेरेंट्स अपने बच्चों के अंतर्जातीय विवाह को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते।

बड़े गर्व से हम बताते है क़ि हमारी महान संस्कृति में स्त्री को देवी माना गया है। ठीक भी है अब भला देवियों का इस दुनिया में क्या काम इसीलिए तो हम बच्चियों को जन्म लेने से पहले ही मार देते हैं। बेटी बचाने की बातें #selfiewithdaughtor पर आकर रुक जाती हैं। पंजाब और हरियाणा का हाल देख कर समझ आता है क़ि समस्या गरीबी की नहीं बल्कि मानसिकता की है। बेहतर होता अगर हम उनको आम इंसान ही मानते।

रोड पर खड़े होकर आती जाती लड़कियो को छेड़ने वाले लड़के अपनी बहन के साथ ऐसा कुछ होने पर बर्दाश्त नहीं कर पाते। हर लड़की में अपनी गर्लफ्रेंड ढूँढने वाला भाई ही अपनी बहन के ब्वॉयफ्रेंड की सबसे ज्यादा धुलाई करता है।

खैर लिखने वाले तो लिखते ही रहेंगे। यहाँ किसे फर्क पड़ रहा है। शरीर नष्ट हो जाते है पर hypocrisy तो आत्मा की तरह अजर अमर है। लगता है यहाँ तो सब ऐसे ही चलता रहेगा।

जनसत्ता 2 अक्टूबर 2015 में भी प्रकाशित

http://epaper.jansatta.com/603025/Jansatta.com/Jansatta-Hindi-02102015?show=touch#page/5/2