पिछले दिनों हमारी वीआईपी संस्कृति पर दो परस्पर विरोधाभासी खबरे पढ़ने को मिली। गुजरात विधानसभा अध्यक्ष गांधीनगर के सिविल अस्पताल में आंखें चेक करवाने गए और गाड़ी गलत पार्किंग में लगा दी। अब वहां मौजूद बेचारा गार्ड अपनी ड्यूटी से मजबूर था और अध्यक्ष महोदय को पहचानता भी नही था सो उसने उनको वहां से गाड़ी हटाने को कहा। सुबह शाम जी हुज़ूर सुनने वाले नेताजी भला यह गुस्ताखी कैसे बर्दाश्त करते। पहले तो उन्होंने अपने तरीके से उसको झड़प लगाई और फिर बाद में गार्ड को अपनी नॉकरी से भी हाथ धोना पड़ा। बात यही तक खत्म नही हुई। अस्पताल ने उस सुरक्षा एजेंसी का कॉन्ट्रैक्ट ही रद्द कर दिया। अब हॉस्पिटल वाले चाहे लाख सफाई दे कि इसका अध्यक्ष महोदय से कोई संबंध नही है पर कोई बच्चा भी यह सब समझ सकता है की यह सब किसके इशारों पर हुआ है। यह शायद हमारे महान लोकतंत्र के सामंतवाद का नया संस्करण है।
दूसरी खबर बंगलोर से आयी जहां एक ट्रैफिक इंस्पेक्टर ने माननीय राष्ट्रपति के काफिले के बीच एक एम्बुलेंस को निकलने का रास्ता दिया। इंस्पेक्टर के इस कदम की आम जनता से लेकर उच्च अधिकारियों सभी ने जम कर प्रशंसा की। एक तरफ बंगलोर वाली खबर जहां नई उम्मीद जगती है वही गांधीनगर की घटना डराती है।
असल मे इतने सालों की गुलामी हमारे अवचेतन मन पर ऐसी छाई है कि हम आज़ादी के 70 साल बाद भी इस प्रकार की घटनाओं को गंभीरता से नही लेते। आये दिन आम बातचीत में हम यह सुनते रहते है कि वो तो फलाने मंत्री या नेता का खास आदमी है और कोई भी काम चुटकियों में करा सकता है या फलाना आदमी बहुत जुगाड़ू है। दरअसल यह जुगाड़ू प्रवृति और जी हजूरी वाली संस्कृति ही इस आधुनिक सामंतवाद की जड़ है। अपना उल्लू सीधा करने के लिए हम जान प्रतिनिधियों को इतना ऊपर चढ़ा देते हैं कि वो स्वयं के लिए विशिष्टता के स्थायी मापदंड गढ़ लेते हैं। इस मानसिक गुलामी से मुक्त होना ओपनिवेशिक गुलामी से आज़ाद होने से कही अधिक चुनोतीपूर्ण है।
जनसत्ता 30/06/2017 में प्रकाशित
http://www.jansatta.com/chopal/chaupal-modern-feudalism/361955/
दूसरी खबर बंगलोर से आयी जहां एक ट्रैफिक इंस्पेक्टर ने माननीय राष्ट्रपति के काफिले के बीच एक एम्बुलेंस को निकलने का रास्ता दिया। इंस्पेक्टर के इस कदम की आम जनता से लेकर उच्च अधिकारियों सभी ने जम कर प्रशंसा की। एक तरफ बंगलोर वाली खबर जहां नई उम्मीद जगती है वही गांधीनगर की घटना डराती है।
असल मे इतने सालों की गुलामी हमारे अवचेतन मन पर ऐसी छाई है कि हम आज़ादी के 70 साल बाद भी इस प्रकार की घटनाओं को गंभीरता से नही लेते। आये दिन आम बातचीत में हम यह सुनते रहते है कि वो तो फलाने मंत्री या नेता का खास आदमी है और कोई भी काम चुटकियों में करा सकता है या फलाना आदमी बहुत जुगाड़ू है। दरअसल यह जुगाड़ू प्रवृति और जी हजूरी वाली संस्कृति ही इस आधुनिक सामंतवाद की जड़ है। अपना उल्लू सीधा करने के लिए हम जान प्रतिनिधियों को इतना ऊपर चढ़ा देते हैं कि वो स्वयं के लिए विशिष्टता के स्थायी मापदंड गढ़ लेते हैं। इस मानसिक गुलामी से मुक्त होना ओपनिवेशिक गुलामी से आज़ाद होने से कही अधिक चुनोतीपूर्ण है।
जनसत्ता 30/06/2017 में प्रकाशित
http://www.jansatta.com/chopal/chaupal-modern-feudalism/361955/