आरक्षण की मांग को लेकर जाटों द्वारा चलाये गए आंदोलन से एक बार फिर यह साबित हो गया कि किस प्रकार किसी भी विरोध प्रदर्शन या जायज़-नाजायज़ मांगे मनवाने के लिए सार्वजनिक संपत्ति को सबसे आसान शिकार बनाया जाता है। जाटों को आरक्षण दिया जाए या नहीं यह बहस का विषय हो सकता है पर जिस माध्यम से यह मांग रखी गयी उससे यह तो साफ़ है क़ि एक सभ्य समाज एवं विकसित राष्ट्र बनने के लिए आर्थिक संवृद्धि से आगे बढ़कर भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि मात्र भारत माता की जय बोलने से और तिरंगा झंडा फहराने से ही हम सच्चे देशभक्त नहीं बन जाते बल्कि राष्ट्रीय हितों को व्यंकिगत हितों से ऊपर रखना और राष्ट्रीय संपत्ति की रक्षा करना अधिक ज़रूरी है। आरक्षण कोई ऐसा आपातकालीन मुद्दा नहीं था जिसके लिए रेल यातायात ठप्प कर दिया जाए, दुकाने और घर फूँक दिए जाए, राशन और जलापूर्ति रोक दी जाए और उसी जनता का जीना दूभर कर दिया जाए जिसकी भलाई के नाम पर आरक्षण माँगा जा रहा है।
भारत को आज़ाद हुए और प्रजातंत्र बने 60 से भी ज्यादा साल अवश्य हो गए हैं पर लोकतान्त्रिक मूल्यों को अपनाने के लिए जिस परिपक्वाता एवं उत्तरदायित्व की भावना की ज़रूरत है उसका सत्ता पक्ष और आम जनता दोनों में अभाव दिखता है। कितना अच्छा होता अगर अपने अधिकारों की मांग करने वालो ने संविधान पढ़ा होता तो शायद उन्हें पता चलता कि उसमे वर्णित मूल कर्तव्यों में से एक कर्तव्य सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा से दूर रहना भी है।
जनसत्ता 29 फरवरी 2016 में भी प्रकाशित
http://epaper.jansatta.com/m/735033/Jansatta.com/Jansatta-Hindi-29022016#issue/6/2
इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि मात्र भारत माता की जय बोलने से और तिरंगा झंडा फहराने से ही हम सच्चे देशभक्त नहीं बन जाते बल्कि राष्ट्रीय हितों को व्यंकिगत हितों से ऊपर रखना और राष्ट्रीय संपत्ति की रक्षा करना अधिक ज़रूरी है। आरक्षण कोई ऐसा आपातकालीन मुद्दा नहीं था जिसके लिए रेल यातायात ठप्प कर दिया जाए, दुकाने और घर फूँक दिए जाए, राशन और जलापूर्ति रोक दी जाए और उसी जनता का जीना दूभर कर दिया जाए जिसकी भलाई के नाम पर आरक्षण माँगा जा रहा है।
भारत को आज़ाद हुए और प्रजातंत्र बने 60 से भी ज्यादा साल अवश्य हो गए हैं पर लोकतान्त्रिक मूल्यों को अपनाने के लिए जिस परिपक्वाता एवं उत्तरदायित्व की भावना की ज़रूरत है उसका सत्ता पक्ष और आम जनता दोनों में अभाव दिखता है। कितना अच्छा होता अगर अपने अधिकारों की मांग करने वालो ने संविधान पढ़ा होता तो शायद उन्हें पता चलता कि उसमे वर्णित मूल कर्तव्यों में से एक कर्तव्य सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा से दूर रहना भी है।
जनसत्ता 29 फरवरी 2016 में भी प्रकाशित
http://epaper.jansatta.com/m/735033/Jansatta.com/Jansatta-Hindi-29022016#issue/6/2
We listed your blog here Best Hindi Blogs
ReplyDeleteThank you so much
DeleteThis comment has been removed by the author.
Delete